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लेखनी कहानी -12-Dec-2022 अमर प्रेम

सुनो 
कहो 
आज शाम को क्या कर रहे हो ? 
कुछ खास नहीं । बताओ क्या बात है ? 
बहुत खास बात है । सुनोगे तो उछल पड़ोगे। 
अच्छा ? ऐसी क्या खास बात है ? 
आज मम्मी पापा बाहर जा रहे हैं । 
तो इसमें खास बात क्या है ? 
भैया भी एक सेमीनार में जा रहे हैं । देर रात तक लौटेंगे । 
तो ? 
"एकदम बुद्धू हो । कुछ भी नहीं समझते हो । अरे बाबा मैं आज शाम को घर में अकेली रहूंगी" । सारिका ने मैसेज करते हुए एक बढिया सी इमोजी भेज दी । शैलेष की बांछें खिल गई 
"तो मैं कब आऊं" ? 
"शाम को सात बजे । समझे मेरे भोलेनाथ। और ऐसा करेंगे कि स्विग्गी से ही खाना मंगवा लेंगे और फिर दोनों खूब रोमांस करेंगे । बहुत दिनों से हम मिले भी नहीं हैं ना । आज तुम सारी कसर निकाल लेना" और सारिका ने कई सारी किस वाली इमोजी भेज दी । शैलेष खुश हो गया और  उसने भी उसी तरह रिप्लाई कर दिया । 

शैलेष फटाफट तैयार होकर बाजार गया । एक बढिया सा बूके लिया और मोगरे के फूलों की एक वेणी ले ली । ठीक सात बजे वह सारिका के बंगले पर था । सारिका उसे देखते ही उससे लिपट गई और उसे अपने कमरे में ले आई । 

दोनों बहुत दिनों बाद मिले थे इसलिए वे दुनिया भर की बातें करने लगे । शैलेश ने सारिका के बालों में मोगरे की वेणी लगानी चाही तो सारिका ने उसे रोक दिया "मैं पहले कपड़े बदल आऊं फिर लगाना" । उसने तीखी नजरों से देखते हुए रहस्यमई मुस्कान बिखेर कर कहा 
"ये कपड़े भी तो बढिया हैं । कहीं बाहर जाना है क्या" ? 
"हाय राम , तुम कितने बुद्धू हो, कुछ भी नहीं समझते हो" सारिका ने एक आंख मारते हुए कहा "बस दो मिनट रुकना । इधर गई और उधर आई" कहते हुए सारिका दूसरे कमरे में चली गई । जब वह वापिस आई तो उसने एक ट्रांसपेरेण्ट नाइटी पहनी हुई थी । उसे इस ड्रेस में देखकर शैलेष ने अपनी गर्दन नीचे झुका ली । 
"अरे ऋषि महाराज, इधर देखो । एक अप्सरा आज आपकी "तपस्या" भंग करने के इरादे से आई है और आप नीची गर्दन किए बैठे हैं" । 
"क्षमा करना सारिका , मैं इस तरह तुम्हारी ओर देख नहीं सकता हूं । तुम उन्हीं कपड़ों में सुंदर लग रही थी । पता नहीं ये क्या पहन लिया है" ? 
"अरे ओ संत महाराज ! अब किसका इंतजार कर रहे हो ? हलवा सामने है और फिर भी मुंह फेर रहे हो । मेरा भी किस बुद्धू से पाला पड़ा है । और कोई होता तो पता नहीं अब तक क्या क्या कर लेता वह ? पर तुम तो ठहरे सतयुग के अवतार । अब रासलीला शुरू करते हो या फिर मुझे ही कृष्ण बनना होगा" ? 
"शादी से पहले ये सब ठीक नहीं है सारिका । मुझे अच्छा नहीं लग रहा है" शैलेष नीची नजरें किये हुए बोला 
अब सारिका को गुस्सा आ गया "लगता है कि तू मर्द ही नहीं है । जब ये सब नहीं करना था तो फिर तू यहां आया ही क्यों ? बातें तो "चैट" से भी कर ही रहे थे ना ।  चल निकल साले अभी की अभी" 
सारिका का वह रौद्र रूप देखकर शैलेष डर गया था । सारिका उसे पीछे से धक्का देने के लिये जैसे ही तैयार हुई इतने में मेन गेट खुलने की आवाज आई । सारिका ने खिड़की से देखा तो वह कांप गई 
"ओह, भैया आ गये । जल्दी से कहीं छुप जाओ वरना भैया देख लेंगे तो बड़ा अनर्थ हो जायेगा" 
शैलेष को ऐसी कोई जगह नजर नहीं आई जहां वह छुप सके । इतने में सारिका का युवा भाई शरद कमरे में आ गया । शैलेष को देखकर शरद गुस्से से लाल पीला हो गया और उसने कड़क कर सारिका से पूछा 
"कौन है यह ? और यहां क्या कर रहा है" ? 
सारिका डर के मारे थर थर कांपने लगी । उससे कुछ बोला नहीं गया 
"मैंने पूछा कौन है यह" ? इस बार शरद एक एक शब्द चबा चबा कर बोला 
 "मैं  .... इसे नहीं जानती । कभी देखा नहीं इसे" सारिका डर के मारे बोल गई । 
"क्या सचमुच नहीं जानती या कुछ चक्कर चल रहा है" ? आंखों से अंगारे बरसाते हुए शरद बोला
"सचमुच नहीं जानती । आपकी कसम भैया" । 

अब तो कसम भी खाई जा चुकी थी । जब कभी विश्वास संकट में होता है तो उसे बचाने "कसम" ही आगे आती है । यहां भी वही हुआ । "कसम" विश्वास की ढाल बन गई । कसम से बढकर और दूसरा क्या सबूत हो सकता था ? 
शरद अब शैलेष की ओर मुड़ा "क्यों बे गंदी नाली के कीड़े  ! तेरी हिम्मत कैसे हुई इस घर में पैर रखने की ? बता तू कौन है और यहां क्या लेने आया है" ? 
शरद एक भला लड़का था । वह सारिका से सच्चा प्रेम करता था इसलिए इस स्थिति में भी वह निडर खड़ा रहा और बोला "हम दोनों प्रेम करते है भैया । बस, मिलने के लिए आया था । आपको आपत्ति है तो मैं अभी चला जाता हूं" शैलेष ने बेबाकी से अपनी बात रख दी । घर में पूरी तरह सन्नाटा छाया हुआ था । 
"आया अपनी मरजी से है पर जायेगा मेरी मरजी से । तेरे जैसे लफंगों को तो मैं पुलिस में दूंगा । वही तेरा इलाज करेगी । तू भागकर जायेगा कहां" ? और उसने पुलिस को फोन लगा दिया । शैलेष ने भागने की कोई कोशिश भी नहीं की । 

इतने में पुलिस की गाड़ी का सायरन सुनाई दे गया । शरद ने सारिका को अंदर कमरे में ठेल दिया और खुद पुलिस का इंतजार करने लगा । पुलिस आई और शरद ने थानेदार को कह दिया कि शैलेष एक आवारा लड़का है जो उसकी बहन सारिका के साथ दुष्कर्म करने की कोशिश कर रहा था । थानेदार शैलेष को पकड़कर थाने ले गया । 

शरद एक एडवोकेट था । उसने बार एसोसिएशन से कहकर हड़ताल करवा दी । न्यायपालिका और पुलिस में वकीलों का ही बोलबाला होता है और इनमें इन्हीं की चलती है । शैलेष को कोर्ट में पेश किया गया । एक कटघरे में सारिका खड़ी थी और दूसरे में शैलेष । दोनों आमने सामने थे । सारिका गर्दन नीची किए खड़ी थी मगर शैलेष के चेहरे पर मुस्कान थी । कोर्ट में मौजूद लोग तरह तरह की बातें कर रहे थे 
"आजकल के युवक कितने बेशर्म हो गये हैं । अपराध करने पर भी कैसे बेशर्मी से हंस लेते हैं ये ? कोई शर्मो हया नाम की चीज बची ही नहीं है । ऐसे लोगों को कड़ा दंड दिया जाना चाहिए । बेचारी एक अबला का जीवन दुश्वार कर दिया है इस दुष्ट ने" । 

शैलेष खड़ा खड़ा सब बातें सुनकर रहा था । सुन तो सारिका भी रही थी मगर वह ऐसा अभिनय कर रही थी कि जैसे उसे कुछ होश नहीं है । इतने में जज साहब डायस पर आकर बैठ गये । कोर्ट में शांति व्याप्त हो गई । सरकारी वकील और शरद ने दलील शुरू की । शैलेष का कोई वकील नहीं था । उसके पिता ने वकील कर भी दिया था मगर वकालतनामा पर शैलेष ने हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया । जज ने एक बार फिर पूछा 
"कोई वकील करना चाहोगे" ? 
शैलेष ने दृढता के साथ इंकार में गर्दन हिला दी । जज ने कार्यवाही आगे बढाते हुए सारिका से पूछा 
"क्या इसने तुम्हारे साथ दुष्कर्म करने का प्रयास किया था" ? 
सारिका ने नीची गर्दन किए हुए ही हां में गर्दन हिला दी । 
अब जज ने शैलेष से पूछा 
"क्या तुम इस आरोप को स्वीकार करते हो" ? 

कोर्ट में एक पल को निस्तब्धता छा गई । हर निगाह शैलेष की ओर उठ गई । सारिका जो अभी तक नीची गर्दन किए खड़ी थी , उसने भी शैलेष की ओर देखा । जाने क्या था उन निगाहों में कि शैलेष के अधरों पे फिर से मुस्कान तैर गई । चेहरे पर तेज आ गया और सिर उन्नत हो गया । एकदम शांत और गंभीर आवाज में शैलेष ने कहा
"जी, जज साहब । मैं समस्त आरोप स्वीकार करता हूं" 

जज हैरान थे । आज तक किसी आरोपी ने अपना कोई अपराध स्वीकार नहीं किया था जबकि कइयों के अपराध सीसीटीवी में रिकॉर्ड हो गये थे । तब भी वे आरोपों से इंकार करते रहे । मगर यहां तो और कोई साक्ष्य नहीं था । केवल सारिका के बयान थे । जज ने एक बार फिर पूछा 
"आरोप स्वीकार करने का अंजाम तुम्हें पता है क्या" ? 
"जी जज साहब । मैंने अपराध किया है तो मुझे सजा भी मिलनी चाहिए" । 

जज आगे कुछ कह पाते इससे पहले सारिका रोते हुए बोली 
"क्षमा करें जज साहब, अपराधी ये नहीं , अपराधी तो मैं हूं । मैं प्रेम को जान नहीं सकी । आज मुझे शैलेष ने प्रेम का मतलब समझाया है । शैलेष ने मेरे साथ कुछ गलत नहीं किया बल्कि मैंने तो उसे बहुत उकसाया भी था । मेरा भाई अचानक आ गया था इसलिए मैं घबरा गई थी और भैया की बातों में आकर शैलेष पर झूठा इल्जाम लगा दिया । अगर सजा का कोई हकदार है तो वह मैं हूं । मैंने एक सद्चरित्र, शालीन , संस्कारवान युवक पर झूठे इल्जाम लगाकर न केवल उसकी और उसके परिवार की इज्ज़त मिट्टी में मिला दी है अपितु उसका जीवन भी तबाह कर दिया है । अत : मैं सजा की वास्तविक हकदार हूं" । सारिका का चेहरा यद्यपि आंसुओं में डूबा हुआ था मगर वह अब उस सूरज की तरह दैदीप्यमान हो रहा था जो "ग्रहण" से बाहर निकल आया था । अब उसके अधरों पर एक स्मित मुस्कान बिखर रही थी । अब वह शैलेष की आंखों में आंखें डालने की हिम्मत कर रही थी । 
"नहीं जज साहब, ये मोहतरमा झूठ बोल रही हैं । मैंने इनके साथ दुर्व्यवहार किया है और ये मुझे बचाने के लिए झूठ बोल रही हैं । मैं अपराधी हूं, मुझे दंड दीजिए" । इस बार पहली बार शैलेष के स्वर में चिंता झलक रही थी । 

"ऑर्डर ऑर्डर ! कोर्ट को पता चल चुका है कि सच क्या है और झूठ क्या है । प्रेम वह नहीं है जिसमें केवलअपना सुख तलाश किया जाता है । प्रेम तो वह है जो अपने प्रेमी के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा देता है । शैलेष एक सच्चा प्रेमी है । उसने अपनी प्रतिष्ठा, कुल की मर्यादा और अपना जीवन सब कुछ दांव पर इसलिए लगा दिया कि जिससे वह प्रेम करता है उसकी इज्ज़त पर कोई आंच न आने पाये । और इसी सच्चे प्रेम ने सारिका को झकझोर दिया । वह समाज से डर रही थी लेकिन शैलेष के प्रेम ने उसे हिम्मत दी, उसका हौसला बढाया और उसने सबके सामने प्रेम को स्वीकारकर लिया । यही अमर प्रेम है और इसी की ही जीत होती आई है अब तक । शैलेष निरपराध है और कोर्ट इसे बाइज्जत बरी करती है" । 

शैलेष और सारिका दोनों जने कोर्ट परिसर में ही आलिंगनबद्ध हो गये । 

श्री हरि 
12.12.22 


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2 Comments

Gunjan Kamal

17-Dec-2022 09:26 PM

बहुत ही सुन्दर

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Hari Shanker Goyal "Hari"

18-Dec-2022 05:48 AM

धन्यवाद जी

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